Wednesday, July 23, 2008

चाह नहीं ...

चाह नहीं मै सुरबाला के
गहनों में गूंथा जाऊं
चाह नहीं प्रेमी माला में
बंध प्यारी को ललचाऊं

चाह नहीं सम्राटों के
शव पर हे हरी डाला जाऊं
चाह नहीं देवों के सर पर
चढूं भाग्य पर इतराऊँ

मुझे तोड़ लेना बनमाली
उस पथ पर तुम देना फेंक
मातृभूमि पर शीष चढाने
जिस पथ जाएँ वीर अनेक

- माखनलाल चतूर्वेदी

I used to read this poem long long ago and really liked it. I remembered it today and figured it was so powerful that I should put it here.

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