Monday, February 01, 2010

एक अकेला इस शहर में ...

One of the most beautiful lyrics written. Thanks Gulzar saab for penning them!

कुछ साये कुछ परछाईयां
कुछ चाहत के सजदे

कुछ बहते बादलों पे रखी उम्मीदें
बरसती रहीं तरसती रहीं

चाँद आसमान में जड़े सुराख की तरह झांकता रहा
और रात किसी अंधे कुएं की तरह मूह खोले हांफ्ती रही

रास्ते पाँव तले से निकलते रहे
ना रुके न थामे, न रोका न पूछा
ज़िन्दगी किस तलाश में है

ज़िन्दगी थकने लगी है
और यह ज़िन्दगी का जुड़वाँ,
उसकी उंगली पकडे
शहर की नंगी सड़कों पर
अभी तक
कुछ बीन रहा है कुछ ढूँढ रहा है

- गुलज़ार

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