I was reading this article on a Hindi portal from Indore and really liked it. Here are some excerpts in case you are interested in a quick read.
स्वभावतः मनुष्य अपने जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की कामना करता है। उसकी सर्वाधिक महत्वपूर्ण इच्छाओं में से एक है, धन और यश की इच्छा और उसे उपलब्ध करने के लिए वह प्रत्यन करता रहता है। साधारणतया मनुष्य के प्रत्येक कर्म के पीछे यही अंतःप्रेरणा होती।
अयोध्यासिंह उपाध्याय के अनुसार- 'जिससे होता ही रहे अन्य जनों को क्षोभ/ है आनंदित कर नहीं निंदित है वह लोभ।''अंतहीन समुद्र की लहरों की तरह इच्छाओं पर सवार मनुष्य जीवन सागर में भटकता रहता है, जो उसकी आंतरिक चेतना को छिन्न-भिन्न कर देता है। इसलिए कहते हैं- 'अनियंत्रित इच्छा मनुष्य को अच्छा नहीं बनने देती। सभी बुराइयों की जड़ यही इच्छा है।' महात्मा बुद्ध ने भी कहा था कि 'इच्छा से दुःख आता है, इच्छा से भय आता है। जो इच्छाओं से मुक्त है, वह न दुःख जानता है और न भय।''
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